हमें जो वशीकरण सिद्धि चाहिए, सबसे पहले उसके गुणों का विश्लेषण करना चाहिए, फिर उसी के अनुसार मंत्र, हवन, पूजा सामग्री आदि का चयन किया जाता है। इन सब वस्तुओं का चयन देवी-देवताओं के अनसार किया जाता है। वशीकरण में जिन समिधाओं एवं सामग्रियों की आवश्यकता होती है, उन्हें हमने साधनाओं में यथास्थान दिया है। इन सामग्रियों के चुनाव में भी भाव पर ध्यान दिया जाता है। मंत्र-तंत्र ग्रंथों में षट्कर्मों के विषय में विवरण प्राप्त होते हैं। इन षटकमों में वशीकरण का मुख्य स्थान है। वशीकरण क्रिया द्वारा साध्य व्यक्ति को वशीभूत कर, उससे अपनी इच्छानुसार कार्य कराया जा सकता है, जो इस कर्म की सबसे बड़ी विशेषता है। यह इस विद्या का दुनियावी प्रयोग है। वास्तव में तंत्र-विद्या में वशीकरण वह मुख्य विधि है, जिसके द्वारा देवी देवताओं या यक्षिणी, किन्नर, भूत-प्रेत आदि का आह्वान किया जाता है। इस विद्या का एक रूप प्रकृति को बांधने में भी प्रयुक्त किया जाता है। तंत्र की किसी भी साधना को आरंभ करने से पूर्व साधक को कुछ निश्चित नियमों का पालन करना पड़ता है। बिना इनका पालन किये सफलता मिलने में संदिग्धता रहती है।

तंत्र में वशीकरण की कुछ ऐसी क्रियाएं हैं, जिनमें केवल मंत्रों को सिद्ध किया जाता है। मंत्र सिद्ध होने पर साधारण क्रियाओं द्वारा मंत्र पढ़कर ईष्ट का लक्ष्य करने से उसका वशीकरण हो जाता है। इस वशीकरण से पशु तक भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहते हैं। मंत्र का एक निश्चित संख्य में जप करने से शब्दों के पारस्परिक घर्षण के कारण वातावरण में एक प्रकार की विद्युत तरंगें उत्पन्न होने लगती हैं, जिससे साधक की इच्छाओं, भावनाओं को शक्ति प्राप्त होती है। फिर वही होता है जो वह चाहता है।परन्त इसके लिए मंत्र जपने की एकलय-स्वरबंध क्रिया होती है, जिसका वर्णन पुस्तक में नहीं किया जा सकता है इसे केवल मंत्र दीक्षा देते समय केवल गरु प्रदान करता है। इसके अंतर्गत अनेक सूक्ष्म वातें भी होती है। जो केवल गुरु ही बता सकता है। इनमें जप के समय की मुद्रा, प्रकाश, दीपक आदि का सूक्ष्म निर्देश होता है। परन्तु जिज्ञासु पाठकों की कल्याण भावना को ध्यान में रखते हुए पुस्तक में इन बातों का विवरण दिया गया तंत्र का सामान्य भाषा में अर्थ अनुष्ठान और रक्षा आदि से भी है। तंत्र द्वारा ही सांसारिक और पारलौकिक जीवन में सुख प्राप्त होता है। यह वह प्रक्रिया है जो मंत्रानष्ठान के सिद्धांतों पर आधारित है। तंत्र प्राणियों की रक्षा करने में समर्थ है। सूक्ष्म तंत्र शास्त्र में साधना की तीन विधियां हैं-तंत्र, मंत्र और यंत्र । तंत्र मुख्य है। इसके द्वारा तांत्रिक विशेष प्रकार की सूक्ष्म तरंगें उत्पन्न करता है जो प्राणी की इच्छा पूर्ण करने में सहायक होती हैं। मंत्र का उच्चारण विशेष उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए किया जाता है। ये मंत्र शक्ति केन्द्र को प्रभावित करके अभीष्ट फल प्रदान करने में सहायक होते हैं। यंत्र आकृति-प्रधान होता है।

जब किसी निश्चित तिथि, दिन, यार, लग्न एवं मुहर्त आदि में विधि-विधानपूर्वक साधना की जाती है, तो उसके चमत्कारिक परिणाम अवश्य ही प्राप्त होते हैं।

प्रत्येक व्यक्ति का जीवन इच्छाओं और मनोकामनाओं से भरा हुआ होता है। प्रत्येक व्यक्ति की केवल यही इच्छा होती है कि उसकी सभी कामनाओं की पूर्ति सरलता से हो जाए। लेकिन जीवन में कदम-दर-कदम आने वाली बाधाओं के कारण उसे हर क्षण संघर्ष करना पड़ता है। इन बाधाओं को दूर करने के लिए बस कुछ सरल साधनाओं द्वारा आप जीवन में सच्चा सुख और आनंद प्राप्त कर सकते हैं। इसी तंत्र, मंत्र एवं यंत्र द्वारा वशीकरण का प्रभाव उत्पन्न किया जा सकता है। वशीकरण अपने आप में अकेला नहीं है। इसके अंतर्गत सम्मोहन, मोहिनी विद्या और आकर्षण भी आते हैं।

मंत्र-तंत्र द्वारा वशीकरण सरल है। तंत्र-मंत्र की क्रियाएं परस्पर अलग-अलग है, परन्तु वे एक-दूसरे की परिपूरक है। तंत्र साधना वस्तु-प्रधान है, जबकि मंत्र साधना शब्द-प्रधान है। तंत्र साधना में कई निश्चित क्रियाएं संपादित करनी पड़ती हैं। लेकिन मंत्र साधना में शब्दों का प्रयोग करके ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। तंत्र-मंत्र से प्राप्त ऊर्जा को ही यंत्र में स्थापित किया जाता है। तंत्र शास्त्र में शरीर में विद्यमान शक्ति केन्द्रों को जाग्रत करके सिद्धि प्राप्त करना मुख्य उद्देश्य है।

वशीकरण कर्म- सम्मोहन का ही विकसित रूप है। सम्मोहन में क्रिया विशेष द्वारा व्यक्ति को अपने संकेतानुसार कार्य करने का निर्देश दिया जाता है और व्यक्ति उस कार्य को करता रहता है। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि व्यक्ति सम्मोहित न होकर विरोधात्मक प्रतिक्रिया प्रदर्शित करने लगता है। इसके विपरीत वशीकरण में व्यक्ति साधक के वश में पूर्ण रूप से हो जाता है और साधक उससे अपना मनचाहा कार्य करा सकता है। वशीकरण की सिद्धि के लिए मंत्र-यंत्र का पूजन विशेष प्रभावी माना जाता है

यदि वशीकरण साधना श्रद्धा-विश्वास से की जाए तो सफलता अवश्य मिलती है। लेकिन साधक का भाव (मन) दूषित नहीं होना चाहिए। नियमानुसार की गयी साधना लाभदायक रहती है, जबकि नियमों के विपरीत की गयी साधना का परिणाम दुःखद और असफलता देने वाला होता है। इसलिए नियमों का पालन करना आवश्यक माना गया है।

वशीकरण हेतु कलश निर्णय- वशीकरण प्रयोग में जहां पर भी कलश-स्थापना करने का निर्देश किया गया है, वहां चांदी के कलश की स्थापना करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसके अभाव में ताम्र कलश की स्थापना की जा सकती है।

माला निर्णय-वशीकरण प्रयोग में मूंगा और मोती की माला द्वारा जप करना श्रेष्ठ फलदायक माना गया है। परन्त माला प्रयोग करने से पूर्व माला को सिद्ध मंत्रों द्वारा चैतन्य अवश्य कर लें। मूंगा और मोती की 27 दानों की माला प्रयोग में लायी जाती है। इनके अभाव में 108 दानों की असली रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करना चाहिए।

मंत्र जप के नियम और मंत्र उत्कीलन की विधि- मंत्र जप निर्देशित आसन पर, बैठकर दायें हाथ की मध्यमा अंगुली द्वारा अंगूठे के माध्यम से ही माला को फेरना चाहिए तथा यथासंभव मंत्र का जप बुदबुदाते हुए। करना चाहिए।

मंत्र के उत्कीलन के लिए जिस मंत्र का जप करना हो, उसे पहले अष्टगंध द्वारा भोजपत्र पर लिखकर धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करें। फिर एक तांबे के लोटे में जल भरकर उसे भोजपत्र पर लिखे हुए मंत्र पर धार बनाकर डालते हुए, उस मंत्र का जप करते रहें। इस प्रकार मंत्रों पर जल चढ़ाने तथा 108 बार मंत्रोच्चारण करने से मंत्र का ‘उत्कीलन’ हो जाता है। पर ‘शाबर मंत्रों का उत्कीलन करने की आवश्यकता नहीं होती है।

मास और पक्ष निर्णय- वशीकरण साधना के लिए आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, फाल्गन, आषाढ़ और श्रावण शुभ माने गये हैं। इनमें भी आश्विन व कार्तिक सर्वश्रेष्ठ माने गये हैं। इसके अलावा शुक्ल पक्ष सात्विक साधनाओं के लिए निर्धारित किया गया है। कृष्ण पक्ष में तामसिक साधना के लिए अच्छा माना गया है।

ऋतु निर्णय- वशीकरण साधना और सिद्धि के लिए बसंत ऋतु को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ऋषियों के मतानुसार, सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक के मध्य चौबीस घंटों के अंतराल में चार-चार घंटे के लिए प्रत्येक ऋत का क्रमशः काल निर्धारित होता है। सूर्योदय प्रारंभ से अगले चार घंटे तक के समय को बसंत ऋतु काल माना जाता है।

वार एवं तिथि निर्णय- वशीकरण सिद्धि हेतु नवमी, दशमी, एकादशी, पूर्णिमा और अमास्वया तिथियां शुभ मानी गयी हैं। पर, साधना में निर्देशित नियमानुसार ही तिथि का निर्णय किया जाना चाहिए। जहां पर तिथि का उल्लेख नहीं किया गया है वहां उक्त तिथियों में साधना की जा सकती है।

जहां पर साधना में तिथि का उल्लेख नहीं किया गया है वहां शुक्रवार,शनिवार अथवा रविवार के दिन मुहूर्त के अनुसार साधना की जा सकती

समय निर्णय- वशीकरण साधना में जहां पर समय का उल्लेख नहीं किया गया है. उन सभी साधनाओं को प्रातः चार बजे से आरम्भ कर सूर्योदय के दो घण्टे बाद तक करना शुभ रहता है।

लग्न निर्णय- लग्नों की संख्या बारह है। पर, वे सभी समान रूप से प्रभावी नहीं होते हैं। तिथि, वार और समय, नक्षत्र आदि के साथ लग्न का ध्यान भी विशेष रूप से आवश्यक होता है। वैसे साधनाओं में जहां पर लग्नों का उल्लेख नहीं किया गया है, वहां दिन के मेष लग्न, कन्या लग्न, कर्क लग्न, तुला लग्न, मकर लग्न और कुंभ लग्न में प्रयोग करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

नक्षत्र निर्णय- वशीकरण साधना में लग्नादि की भांति नक्षत्रों को भी महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। वशीकरण साधना के लिए निम्न नक्षत्र

श्रेष्ठ माने गये हैं-
1. ज्येष्ठा नक्षत्र

2. उत्तराषाढ़ा नक्षत्र

3. अनुराधा नक्षत्र

4.रोहिणी नक्षत्र

5. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र

6. आश्लेषा नक्षत्र

7. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र

8. शतभिषा नक्षत्र

वैसे पुष्य नक्षत्र को सर्वाधिक उत्तम और कल्याणकारी माना गया है। इस नक्षत्र में की गयी साधना सिद्धि प्रदान करने वाली होती है।

दिशा निर्णय– वशीकरण साधनायें उत्तर दिशा की ओर मुख करके करनी श्रेष्ठ मानी जाती हैं। पर, यदि कहीं पर किसी विशेष दिशा के बारे में निर्देश दिया गया है तो उसका पालन करना चाहिए।

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