प्राचीन काल से ही विश्व के लगभग सभी देशों में विभिन्न प्रकार के टोटकों का प्रचलन रहा है। मिश्र तथा यूनान आदि सभ्यताओं में इस प्रकार की क्रियाओं का उल्लेख मिलता है। भारत में विशेषकर बौद्धकाल में इनका प्रयोग चरम सीमा पर था। आज भी इन क्रियाओं के उपयोग में कमी नहीं है। विभिन्न धर्मावलम्बी अपने ज्ञान-विज्ञान के साथ-साथ भिन्न-भिन्न कामनाओं को सिद्ध करने में इन टोटकों का प्रयोग करते हैं। वास्तव में ये टोटके अनायास ही मानव की किसी भी कामना की पूर्ति करने में पूर्ण समर्थ हैं तथा इनका प्रयोग पूर्ण आस्था व विश्वास के साथ किया जाना चाहिए। सर्वप्रथम तत्संबंधी उपयुक्त सामग्री लाने के बाद शुभ मुहूर्त में बिना किसी को बताए, इनका प्रयोग करना चाहिए। ध्यान रहे इनका प्रयोग किसी गलत कार्य के लिए कभी न करें, अन्यथा इनकी शक्ति क्षीण हो जाती है तथा प्रभाव भी निष्फल हो जाता है। तांत्रिक प्रयोग करते समय साधक का ध्यान एकाग्र तथा पूर्ण रूप से अपने लक्ष्य पर स्थिर होना चाहिए। ये टोटके बिना किसी प्रकार नागा किए प्रतिदिन एक निश्चित समय व स्थान पर करना चाहिए। ऐसा करते समय साधक तन-मन से शुद्ध होकर अपने ईष्ट देव की पूजा के उपरान्त कार्य सिद्धि के लिए प्रार्थना
करता हुआ, इस कार्य में प्रवृत्त होवे तो उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण हो जाती है।

सभी धार्मिक ग्रन्थों व विद्वानों ने मानव देह को सबसे उत्तम माना है तथा वेदों में यहां तक कहा गया है कि देवता भी मानव देह प्राप्ति के लिए तरसते हैं क्योंकि वे अपनी शक्ति व अस्तित्व में वृद्धि किए बिना मानव शरीर धारण किए नहीं कर पाते। यही कारण है कि विभिन्न दैवी शक्तियां समय-समय पर मानव योनियों में जन्म लेकर मानव को चमत्कृत कर जाती हैं। भक्त प्रहलाद व महाभारत के भीष्म पितामह इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

अब तक आध्यात्मिक वैज्ञानिकों ने दिव्य शक्ति प्राप्त करने के लिए हजारों तरीके तथा साधना विधियों का निर्माण किया है, जिनकी सहायता से व्यक्ति पराविद्या साधना, देवोपसना, भूत-प्रेत, यक्ष व जिन्न साधना, नाग-नागिन साधना व परकाया प्रवेश व नाना प्रकार की साधनाओं की खोज कर उनकी प्रामाणिकता को सिद्ध किया है। वास्तव में जिस प्रकार चुम्बक लोहे के कणों को आकर्षित करता है, उसी प्रकार ये प्राकृतिक वनस्पतियां तथा क्रियाएं अपने गुणों एवं स्वभावों की शक्ति से प्रयोगकर्ता को पूर्ण रूप से लाभान्वित कर देती है। साथ ही ईश्वरोपासना तथा दैवी शक्ति के स्मरण से उसकी शक्ति का दुगने वेग से प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि टोटकों में शक्ति का रहस्य विद्यमान है तथा इस क्रिया को मंत्र साधना तथा यंत्र साधना से कहीं ज्यादा महत्व प्राप्त है। कहा जाता है कि मंत्र साधना से व यंत्र साधना से जब कोई कार्य नहीं बनता तो उस कार्य की प्राप्ति हेतु टोने-टोटके का सहारा लिया जाता है। इसके द्वारा बिना किसी प्रकार की जप सिद्धि व हवन किए ही अपना लक्ष्य
साधारण-सी गोपनीय क्रिया को करने मात्र से पूर्ण हो जाता है। साधक वर्षों साधना के बाद अदृश्यीकरण, पानी पर चलने आदि की मंत्र साधना करते हैं. परंतु यही कार्य टोटकों द्वारा बिना किसी प्रकार के अधिक परिश्रम के स्वतः सुलभ हो
जाता है। टोटकों में भगवान शंकर द्वारा शक्तियों को तत्संबंधी कार्य पूर्ण करने का वरदान दिया गया है। जिससे शक्तियां स्वतः उक्त क्रिया करने पर अपने प्रभाव से टोटकों के कार्यों को पूरा करती हैं इसलिए साधकों को अपने उपयोगी टोटकों को तंत्र शक्ति का खजाना मानकर परम गुप्त तथा समय आने पर ही प्रयोग करना चाहिए।

दिव्य शक्ति प्राप्त करने के लिए साधक जब वैराग्य का मार्ग अपनाता था तो कुछ लोग उसे उदासीन व पलायनवादी कहते थे। कुछ लोग व्यंग करते तथा कहते, संसार से भागे-भागे फिरते हो तो भगवान को तुम क्या पाओगे। हर प्रकार से समाज उसे गिरी निगाहों से देखता। इस प्रकार वह समाज में निन्दा व कोप का भाजन बनता। क्या शील है, क्या अश्लील है तथा क्या पाप है, क्या पुण्य है-इस विषय पर विवाद करने से लम्बी बहस की जा सकती है, परंतु तंत्र मार्ग में इन सबका कोई महत्व नहीं है। योगी तांत्रिक अपनी शक्ति साधना में इनका रंचमात्र भी विचार करेगा तो निश्चय ही वह कभी सफल नहीं हो सकता। एक ही क्रिया एक स्थान पर शील है तो दूसरे स्थान पर अश्लील हो जाती है। जैसे एक स्त्री अपने वंश वृद्धि के लिए अपने पति के साथ सम्भोगरत होती है तो वह मर्यादा कही जाती है, परंतु वही जब अपने प्रेमी के साथ ऐशो-आराम व आनन्द प्राप्ति के लिए चोरी-छिपे संभोगरत होती है तो उसे समाज घृणा की दृष्टि से देखता है तथा घोर पाप मानता है। इन दोनों स्थितियों में संभोग क्रिया एक जैसी है तथा उससे मिलने वाले आनन्द में समानता होते हुए भी एक सराहनीय तथा दूसरी निन्दनीय क्रिया बन जाती है।

व्यक्तिगत जीवन में अक्सर देखा गया है कि जो व्यक्ति साधारण सुई भी चलाना न जानता हो, यदि उसके हाथ में छोटी-सी कटार आ जाए तो वह बिना परिणाम जाने ही उसे पेट में घुसेड़ देता है, परंतु उस कट चुके अंग की चिकित्सा करने के लिए विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है। बिना कुशल डॉक्टर के एक साधारण घाव सेप्टिक में बदल जाता है,
जिससे मृत्यु हो जाती है। अतः किसी भी विद्या का प्रयोग करने से पहले भली प्रकार उसकी सिद्धि व अभ्यास आवश्यक होता है। हालांकि तांत्रिक टोटके इतने सुगम नहीं हैं, परंतु थोड़ी-सी जानकारी लेकर इतने ज्यादा तांत्रिक बन गए हैं, जो किसी का हित तो नहीं कर पाते, अहित अवश्य कर जाते हैं। अपने छल-प्रपंच से दूसरों का धन प्राप्त कर, उसका पानी की भांति उपयोग करते हैं क्योंकि एक बार तांत्रिक प्रयोग हो जाने पर उसकी काट करना, किसी विद्वान तांत्रिक के वश की बात होती है। बिना उस प्रयोग की सम्पूर्ण विधि की जानकारी के उसकी काट संभव नहीं होती।यह कौन-सा तांत्रिक प्रयोग हुआ, इसको किस विधि से काटा जा सकता है आदि विषयों की सम्पूर्ण जानकारी होनी आवश्यक होती है।

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